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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आशा की नयी किरणें

आशा की नयी किरणें

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :214
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1019
आईएसबीएन :81-293-0208-x

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प्रस्तुत है आशा की नयी किरणें...

कथनी और करनी?


(१)

कथनी मीठी साँड सी, करनी विष की लोय।
कथनी तज करनी करे, नारायण सो होय।।

(२)

कहते तो करते नहीं, मुँह के बड़े लबार।
तुलसी ऐसे नरन को, बार बार धिकार।।

आचार्य श्रीराम शर्माके ये शब्द देखिये कितने मार्मिक है-'कहीं आप भी तो शेखचिल्की नहीं हैं?'

एक शेखचिल्लीने मधुर कल्पनाओंमें मस्त होकर अपने सिरपर रखे हुए तेलके घड़ेको फोड़ दिया था और मजूरीके पैसे मिलना तो दूर, उलटे लात-घूँसोसे पिटा था। वह शेखचिल्ली कहता तो बहुत था, बड़ी-बड़ी योजनाएँ बनाता था, पर करता कुछ भी न था और उसकी बेवकूफीकी हँसी उड़ायी जाती थी। कहीं आप भी तो शेखचिल्ली नहीं हैं? हम देखते हैं कि हम सब भी प्रकारान्तरसे शेखचिल्लीका अभिनय कर रहे हैं। कहते बहुत है, योजनाएँ बड़ी-बड़ी बनाते हैं, पर व्यवहारमें कुछ भी नहीं लाते। वस्तुतः हम जहांकि तहाँ पड़े रह जाते हैं।

वास्तवमें समस्या यह नहीं कि हमारे पास उपयोगी विचार या सुन्दर योजनाएँ न हों। हमें क्या करना चाहिये? किन बातोंसे बचना चाहिये? क्या उचित है, क्या अनुचित है? हम सब उस सम्बन्धमें बहुत कुछ जानते है। समस्या यह है कि अन्ततः हम कार्य कितना करते है। व्यवहारमें, उन्नतिकी योजनाओंको दैनिक जीवनमें कहाँ तक उतारते हैं? नवीन विचारोंपर व्यवहार कितना करते हैं? जो हम सोचते हैं, क्या वह करते भी हैं। गुप्त भावनाओंको कार्यरूपी प्राण कितना प्रदान करते हैं?  

वास्तवमें हम शुभ योजनाएँ तो बहुत बनाते हैं। उत्तमोत्तम विचारोंसे प्रसन्न होते हैं, किंतु उनपर कार्य नहीं करते। यही दुर्बलता है। हमें विचारके पश्चात् सतत कार्य करना चाहिये। कार्यसे ही सिद्धि प्राप्त होती है। कार्य ही सफलताका मूल मन्त्र है।

मनभर ज्ञानसे एक सेर क्रिया अधिक है। मनुका वचन है-

मनःपूतं समाचरेत्।

उन्नतिके लिये विचारपूर्वक कार्य करो। कार्यमें आलस्य करना मृत्युपद है।

मनस्येकं वचस्पेकं कर्मण्येकं महात्मनाम्।

मन, वाणी और कार्यमें जो एक हो, वही सच्चा महात्मा है। जो काम नहीं करते, जो कार्यके महत्त्वको नहीं जानते, कोरा चिन्तन-ही-चिन्तन करते रहते हैं, वे निराशावादी हो जाते हैं। कार्य करनेसे आपका विचार अपना पूर्ण स्वरूप प्राप्त करता है। पुष्पित फलित होता है-

शेक्सपीयरने एक स्थानपर कहा है-

'The flighty purpose never is overtook unless the deed go with it.' मनमें जो भव्य विचार या शुभ योजना उत्पन्न हो, उसे तुरंत कार्यरूपमें परिणत कर डालिये, अन्यथा वह जिस तेजीसे मनमें आया है, वैसे ही एकाएक गायब हो जायगा और आप उस सुअवसरसे लाभ न उठा सकेंगे।'

'काल्ह करे सो आज कर, आज करे सो अब्ब' वाली कहावतमें क्रियाशीलताका ही अमर संदेश छिपा हुआ है। जब कोई उत्तम योजना मनमें आये तो उसे कार्वांन्वित करनेमें देरी नहीं करनी चाहिये, अन्यथा अन्य बहुत-से कार्य आ जायँगे और वह भव्य विचार नष्ट हो जायगा। अपनी अच्छी योजनाओंमें लगे रहिये जिससे आपकी प्रवृत्तियों शुभ कार्योंमें लगी रहें। कथनी और करनीमें सामञ्जस्य ही आत्मसुधारका श्रेष्ठ उपाय है।

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    अनुक्रम

  1. अपने-आपको हीन समझना एक भयंकर भूल
  2. दुर्बलता एक पाप है
  3. आप और आपका संसार
  4. अपने वास्तविक स्वरूपको समझिये
  5. तुम अकेले हो, पर शक्तिहीन नहीं!
  6. कथनी और करनी?
  7. शक्तिका हास क्यों होता है?
  8. उन्नतिमें बाधक कौन?
  9. अभावोंकी अद्भुत प्रतिक्रिया
  10. इसका क्या कारण है?
  11. अभावोंको चुनौती दीजिये
  12. आपके अभाव और अधूरापन
  13. आपकी संचित शक्तियां
  14. शक्तियोंका दुरुपयोग मत कीजिये
  15. महानताके बीज
  16. पुरुषार्थ कीजिये !
  17. आलस्य न करना ही अमृत पद है
  18. विषम परिस्थितियोंमें भी आगे बढ़िये
  19. प्रतिकूलतासे घबराइये नहीं !
  20. दूसरों का सहारा एक मृगतृष्णा
  21. क्या आत्मबलकी वृद्धि सम्मव है?
  22. मनकी दुर्बलता-कारण और निवारण
  23. गुप्त शक्तियोंको विकसित करनेके साधन
  24. हमें क्या इष्ट है ?
  25. बुद्धिका यथार्थ स्वरूप
  26. चित्तकी शाखा-प्रशाखाएँ
  27. पतञ्जलिके अनुसार चित्तवृत्तियाँ
  28. स्वाध्यायमें सहायक हमारी ग्राहक-शक्ति
  29. आपकी अद्भुत स्मरणशक्ति
  30. लक्ष्मीजी आती हैं
  31. लक्ष्मीजी कहां रहती हैं
  32. इन्द्रकृतं श्रीमहालक्ष्मष्टकं स्तोत्रम्
  33. लक्ष्मीजी कहां नहीं रहतीं
  34. लक्ष्मी के दुरुपयोग में दोष
  35. समृद्धि के पथपर
  36. आर्थिक सफलता के मानसिक संकेत
  37. 'किंतु' और 'परंतु'
  38. हिचकिचाहट
  39. निर्णय-शक्तिकी वृद्धिके उपाय
  40. आपके वशकी बात
  41. जीवन-पराग
  42. मध्य मार्ग ही श्रेष्ठतम
  43. सौन्दर्यकी शक्ति प्राप्त करें
  44. जीवनमें सौन्दर्यको प्रविष्ट कीजिये
  45. सफाई, सुव्यवस्था और सौन्दर्य
  46. आत्मग्लानि और उसे दूर करनेके उपाय
  47. जीवनकी कला
  48. जीवनमें रस लें
  49. बन्धनोंसे मुक्त समझें
  50. आवश्यक-अनावश्यकका भेद करना सीखें
  51. समृद्धि अथवा निर्धनताका मूल केन्द्र-हमारी आदतें!
  52. स्वभाव कैसे बदले?
  53. शक्तियोंको खोलनेका मार्ग
  54. बहम, शंका, संदेह
  55. संशय करनेवालेको सुख प्राप्त नहीं हो सकता
  56. मानव-जीवन कर्मक्षेत्र ही है
  57. सक्रिय जीवन व्यतीत कीजिये
  58. अक्षय यौवनका आनन्द लीजिये
  59. चलते रहो !
  60. व्यस्त रहा कीजिये
  61. छोटी-छोटी बातोंके लिये चिन्तित न रहें
  62. कल्पित भय व्यर्थ हैं
  63. अनिवारणीयसे संतुष्ट रहनेका प्रयत्न कीजिये
  64. मानसिक संतुलन धारण कीजिये
  65. दुर्भावना तथा सद्धावना
  66. मानसिक द्वन्द्वोंसे मुक्त रहिये
  67. प्रतिस्पर्धाकी भावनासे हानि
  68. जीवन की भूलें
  69. अपने-आपका स्वामी बनकर रहिये !
  70. ईश्वरीय शक्तिकी जड़ आपके अंदर है
  71. शक्तियोंका निरन्तर उपयोग कीजिये
  72. ग्रहण-शक्ति बढ़ाते चलिये
  73. शक्ति, सामर्थ्य और सफलता
  74. अमूल्य वचन

विनामूल्य पूर्वावलोकन

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